यह कहा जा सकता है कि हलाला[1] की अवधारणा (तसव्वुर) इस्लामी न्यायशास्त्र (फ़िक्हा) का सबसे शर्मनाक मुद्दा है। शरीअत के अनुसार, अगर पति अपनी पत्नी को तीसरी बार तलाक़ दे देता है तो वह दोनों फिर से शादी नहीं कर सकते सिवाय इसके कि पत्नी किसी और से शादी कर ले और वहां से भी उसे तलाक़ हो जाये। इस क़ानूनी ज़रूरत को पूरा करने के लिए धोखे और फ़रेब का यह रस्ता निकाला गया कि एक योजना के तहत औरत की किसी दूसरे मर्द से यह तय करके शादी करायी जाती है कि वह उसे तलाक़ दे देगा और इस तरह से पहला पति उससे फिर से शादी कर सकेगा।
कानूनविद (फुक्हा) ने इस पर यह शर्त भी लगा दी कि दूसरे मर्द के तलाक देने से पहले यह ज़रूरी है कि उसके पत्नी से शारीरिक संबंध बने। धोखे और फरेब की इस योजना, जिसमें एक महिला की शादी दूसरे व्यक्ति से करायी जाती है ताकि वह शारीरिक संबंध बनाकर उसे तलाक़ दे और पहला पति क़ानूनी रूप से फिर से उससे शादी कर सके, को धार्मिक भाषा में हलाला कहा जाता है।
यह कहने की ज़रूरत नहीं कि इस तरह से योजना बनाना इस्लामी कानून और उसकी भावना से खेलना है। इसके अलावा शारीरिक संबंध बनाये जाने की शर्त रसूलअल्लाह (स.व) की बात और हिकमत (प्रज्ञता) को ठीक से ना समझने की वजह से पैदा हुई है।
इमाम बुखारी द्वारा सूचित हदीस पर गौर किया जाये तो यह साफ़ हो जाता है कि एक औरत ने दूसरे मर्द से शादी सिर्फ इसलिए की ताकि उससे तलाक लेकर वह क़ानूनी तौर पर पहले पति से फिर से शादी कर सके। उसने झूठ बोला कि उसका दूसरा पति नामर्द है और इस बुनियाद पर तलाक़ मांगी। रसूलअल्लाह (स.व) उसकी योजना समझ गए और फ़रमाया कि वह पहले पति के लिए सिर्फ तभी जायज़ हो सकती है जब दूसरे पति के साथ संबंध बन जाने के बाद उसे वहां से तलाक हो। इसका मतलब यह था कि अब दूसरा पति तो उसके दावे के मुताबिक नामर्द था इसलिए संबंध नहीं बना सकता था और ना वह पहले से शादी कर सकती थी, और अगर वह संबंध बन जाने की बात कहती तो दूसरे पति के नामर्द होने का दावा झूठा साबित हो जाता। रसूलअल्लाह (स.व) ने उस औरत के झूठ बोलने और कानून का मज़ाक बनाने की वजह से उस मामले में यह अंदाज़ अपनाया, इस अंदाज़ को कुरआन में सूरेह आराफ़ की आयत 40 के ज़रिये आसानी से समझा जा सकता है जिसमें फ़रमाया गया है कि घमंड करने वाला सिर्फ उस सूरत में जन्नत में जा सकता है जब एक ऊंट सुईं के नाके में दाखिल हो जाये, यानी दूसरे शब्दों में कहें तो जा ही नहीं सकता। इस हदीस से भी अगर कोई नतीजा निकल सकता है तो वह हलाला के निषेध (हराम) होने का ही निकल सकता है और कुछ नहीं। यह बात बिलकुल साफ़ है कि हलाला करना शरीअत से खेलना और कानून का मज़ाक बनना है।
हदीस इस प्रकार है:
इक्रामाह सूचित करते है कि रिफाअ ने अपनी पत्नी को तलाक दी और उसके बाद उसने अब्द अल्-रहमान अल्-कुरज़ी से शादी कर ली।आयशा (रज़ि.) कहती हैं कि वह हरा कपड़ा पहने उनके पास आयी और अपने पति की शिकायत की और अपनी चोट दिखायीं। जब रसूलअल्लाह (स.व) आये तो आयशा (रज़ि.) ने उनसे सारा मामला बयान किया। इक्रामाह बताते हैं कि उसके पति को मालूम चला तो वह भी अपनी दूसरी बीवी से हुए दो बेटों के साथ रसूलअल्लाह (स.व) के पास आया। अपने पति को देखकर उसने अपना कपड़ा हाथ में लटका कर कहा कि मेरी शिकायत सिर्फ यह है कि इसके पास जो कुछ है वह इस [मुलायम] कपड़े से ज़्यादा कुछ नहीं है। इस पर अब्द अल्-रहमान ने कहा “रसूलअल्लाह (स.व) यह झूठ बोल रही है, मैं इसकी सारी [शारीरिक] ज़रूरतें पूरी कर सकता हूँ। सच तो यह है कि यह नाफरमान है और रिफाअ के पास वापिस जाना चाहती है। रसूलअल्लाह (स.व) ने यह सुनकर फरमाया “अगर ऐसा है तो तुम रिफाअ के लिए तब तक जायज़ नहीं हो सकती जब तक अब्द अल्-रहमान से तुम्हारा संबंध ना बन जाये।” इसके बाद अब्द अल-रहमान के बेटों की तरफ देख कर पूछा कि क्या यह तुम्हारे बेटे हैं ? हाँ में जवाब मिलने पर आप (स.व) ने फरमाया “तुम इस तरह से झूठ बोलती हो [ऐ अब्द अल्-रहमान की पत्नी] । अल्लाह गवाह है ! जितना एक कौवा दूसरे कौवे से मिलता है यह [लड़के] अब्द अल्-रहमान से उससे भी ज़्यादा मिलते हैं।”[2]
– शेहज़ाद सलीम
अनुवाद: मुहम्मद असजद
[1]. देखें: ग़ामिदी, मीज़ान, 451-452
[2]. सही बुख़ारी, भाग.5, 2192, (न. 5487)