पवित्र कुरआन

68 – सूरह अल-क़लम

अल्लाह के नाम से जो सरासर रहमत है, जिसकी शफ़क़त अबदी है।   यह सूरह नून है। क़लम गवाही देता है और जो कुछ (लिखने वाले उससे) लिख रहे हैं।के अपने परवरदिगार की इनायत से तुम कोई दीवाने नहीं हो।और तुम्हारे लिए यक़ीनन वह सिला है जिस पर कभी ज़वाल न आएगा।और तुम बड़े आला अख़्लाक़…

पवित्र कुरआन

67 – सूरह अल-मुल्क

अल्लाह के नाम से जो सरासर रहमत है, जिसकी शफ़क़त अबदी है। बहुत बुज़ुर्ग, बहुत फैज़-रसा है, वह (परवरदिगार) जिसके हाथ में आलम की बादशाही है और वह हर चीज़ पर कुदरत रखता है। (वही ) जिसने मौत और ज़िन्दगी को पैदा किया ताकि तुमको आज़माए के तुममें से कौन बेहतर अमल करने वाला है।…

ग़लतफहमियां पवित्र कुरआन हदीस

हदीसों से कुरआन की व्याख्या

कुछ विद्वानों का मानना है कि कुरआन की व्याख्या (तशरीह-तफसीर) हदीसों पर निर्भर है और कुरआन को हर हाल में सिर्फ हदीसों के ज़रिये ही समझा जाना चाहिए। हालांकि, कुरआन खुद मिज़ान और फुरक़ान की हैसियत रखता है और कुरआन का यह स्थान ज़ोर देता है कि बाकी हर चीज़ की व्याख्या कुरआन की रौशनी और उसके मार्गदर्शन में होनी…

ग़लतफहमियां पवित्र कुरआन

कुरआन में संपूर्ण ज्ञान का होना

कुछ लोगों का मानना है कि कुरआन के अंदर मुकम्मल इल्म मौजूद है और हमारे किसी भी सवाल का जवाब कुरआन में मिल जायेगा, इस राय की पुष्टि के लिए यह आयत पेश की जाती है: مَّا فَرَّطْنَا فِي الْكِتَابِ مِن شَيْءٍ  ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّهِمْ يُحْشَرُونَ   [٦: ٣٨]  हमने इस किताब के बाहर कोई चीज़ नहीं छोड़ी…

ग़लतफहमियां पवित्र कुरआन

कुरआन की कुछ आयात का अर्थ सिर्फ अल्लाह ही जानता है ?

आमतौर पर यह माना जाता है कि कुरआन की कुछ आयात ऐसी हैं जिनका मतलब सिर्फ अल्लाह जानता है और इंसान उनका मतलब नहीं समझ सकते, इन आयात को ‘मुताशाबिहात’ कहा जाता है। इस बात को स्पष्ट करना ज़रूरी है कि मुताशाबिहात असल में वह आयात हैं जिनमें उन चीज़ों का उल्लेख (ज़िक्र) हुआ है जो…

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कुरआन का सात अ'हरूफ पर उतारा जाना

कुछ हदीसें दावा करती है कि कुरआन सात अ'हरूफ पर नाज़िल किया गया है।  जैसे कि यह खबर:                            “ “अब्द अल-रहमान इब्न अब्द अल-कारी से रवायत है कि उमर इब्न अल-खत्ताब ने उनके सामने कहा: “मैंने हिशाम इब्न हाकीम इब्न हिज़ाम को सूरा फुरकान अलग तरह से पढ़ते हुए सुना और मुझे यह सूरा खुद रसूलअल्लाह…

पवित्र कुरआन

मुक़दमा – अल्-बयान (कुरआन का परिचय)

अपने मज़मून (विषय-वस्तु) के लिहाज़ से कुरआन एक रसूल की सरगुज़श्त-ए-इंज़ार[1] है, यानी अल्लाह के रसूल की दावत, उसके मुख्तलिफ मराहिल (विभिन्न चरण) और उसमें पेश आने वाले नतीजों का बयान है। मुहम्मद (स.व) के बारे में यह मालूम है कि आप नबी होने के साथ रसूल भी थे। अल्लाह जिन इंसानों को लोगों की हिदायत (मार्गदर्शन) के लिए…

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कुरआन में पाठभेद

एक धारणा यह भी है कि कुरआन में पाठभेद (Variant Readings) हैं। यानी कुरआन की एक ही आयत के अलग-अलग संस्करण मौजूद हैं। यह भिन्नता सिर्फ उच्चारण (तलफ्फुज़) में ही नहीं बल्कि शब्दों में भी हो सकती है, उदाहरण के तौर पर कहीं कोई शब्द घट-बढ़ जाना, एकवचन या बहुवचन[1] का फर्क हो जाना या…

ग़लतफहमियां पवित्र कुरआन

क्या कुरआन में कोई समन्वय (नज़्म) नहीं है ?

  आम तौर पर यह माना जाता रहा है कि कुरआन में कोई समन्वय नहीं है और इसकी आयात अव्यवस्थित तरीके (बेतरतीबी) से जमा कर दी गयी हैं। हमीदउद्दीन फराही की “मज्मुआह तफसीर”[1], अमीन अहसन इस्लाही के “तदब्बुर-ए-कुरआन”[2] और जावेद अहमद ग़ामिदी की व्याख्या (तफसीर) “अल-बयान” ने इस गलतफ़हमी को दूर करने का काम किया…

Qur'an पवित्र कुरआन

पवित्र कुरआन का एक अनोखा अनुवाद 

सहरी से पहले क़ुरआन मजीद खोला। सूराह अल् बक़रा सामने थी। संसार का परवरदिगार यहूदियों और ईसाइयों पर प्रमाण स्थापित (हुज्जत कायम) कर रहा है। इसी के साथ ही इब्राहीम की नस्ल की दूसरी शाख़ा यानी बनी-इस्माईल (इस्माइल की औलाद) में से एक “मुसलमान-उम्मत” की नींव रखने का भी ऐलान हो रहा है। इसमें यहूद के गुनाहों का ज़िक्र है और में…