हदीसों की स्वतंत्र व्याख्या
ग़लतफहमियां हदीस

हदीसों की स्वतंत्र व्याख्या

हदीस की व्याख्या (तशरीह) में आम तरीका है कि हर हदीस को स्वतंत्र रूप से समझा जाता है भले ही खबर के अलग-अलग संस्करण हों जिनमें अलग बाते बयान हो रही हों। इसका नतीजा यह निकलता है कि वह पूरी तस्वीर सामने नहीं आ पाती जिसके बारे में हुक्म दिया गया था और अधूरी जानकारी…

ग़लतफहमियां हदीस

हदीसें कुरआन जितनी ही प्रामाणिक हैं ?

कुछ विद्वान (आलिम) मानते हैं कि हदीसें कुरआन जितनी ही प्रामाणिक और विश्वसनीय (मुस्तनद और भरोसेमंद) हैं[1]। यह राय ठीक नहीं है। जहाँ कुरआन की प्रमाणिकता जाँचने की ज़रूरत नहीं है वही हदीस की सनद (उसे बयान करने वालो की श्रृंखला) और उसके मतन (मूलपाठ, जो बात उसमें बयान हुई है) दोनों ही को जाँचना…

ग़लतफहमियां पवित्र कुरआन हदीस

हदीसों से कुरआन की व्याख्या

कुछ विद्वानों का मानना है कि कुरआन की व्याख्या (तशरीह-तफसीर) हदीसों पर निर्भर है और कुरआन को हर हाल में सिर्फ हदीसों के ज़रिये ही समझा जाना चाहिए। हालांकि, कुरआन खुद मिज़ान और फुरक़ान की हैसियत रखता है और कुरआन का यह स्थान ज़ोर देता है कि बाकी हर चीज़ की व्याख्या कुरआन की रौशनी और उसके मार्गदर्शन में होनी…

ग़लतफहमियां सवाल-ओ-जवाब सुन्नत

रसूलअल्लाह (स.व) का हर काम सुन्नत हैं ?

कुछ लोगों मानते हैं कि रसूलअल्लाह (स.व) द्वारा किया गया हर काम सुन्नत है। इस अवधारणा (तसव्वुर) का विश्लेषण करते हुए ग़ामिदी साहब लिखते हैं:[1] कुरआन में यह बात बिलकुल साफ़ है कि अल्लाह के पैगंबर उसका दीन लोगों तक पहुँचाने के लिए आये, उनके इस पैगंबर होने की क्षमता में (पैगंबर की हैसियत से)…

ग़लतफहमियां सुन्नत हदीस

सुन्नत और हदीस का फ़र्क

अकसर सुन्नत और हदीस दोनों शब्दों को पर्यायवाची या एक ही चीज़ समझा जाता है, लेकिन दोनों की प्रामाणिकता (सच्चाई) और विषय-वस्तु (मोज़ू) में बहुत अंतर है। रसूलअल्लाह (स.व) के कथन (क़ौल), कार्य (फेअल) और स्वीकृति एवं पुष्टि (इजाज़त और तस्दीक) की रिवायतों (लिखित परंपरा) या ख़बरों को इस्लामी परिभाषा में ‘हदीस’ कहा जाता है।  यह हदीसें इस्लाम के…

ग़लतफहमियां पवित्र कुरआन

कुरआन में संपूर्ण ज्ञान का होना

कुछ लोगों का मानना है कि कुरआन के अंदर मुकम्मल इल्म मौजूद है और हमारे किसी भी सवाल का जवाब कुरआन में मिल जायेगा, इस राय की पुष्टि के लिए यह आयत पेश की जाती है: مَّا فَرَّطْنَا فِي الْكِتَابِ مِن شَيْءٍ  ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّهِمْ يُحْشَرُونَ   [٦: ٣٨]  हमने इस किताब के बाहर कोई चीज़ नहीं छोड़ी…

ग़लतफहमियां पवित्र कुरआन

कुरआन की कुछ आयात का अर्थ सिर्फ अल्लाह ही जानता है ?

आमतौर पर यह माना जाता है कि कुरआन की कुछ आयात ऐसी हैं जिनका मतलब सिर्फ अल्लाह जानता है और इंसान उनका मतलब नहीं समझ सकते, इन आयात को ‘मुताशाबिहात’ कहा जाता है। इस बात को स्पष्ट करना ज़रूरी है कि मुताशाबिहात असल में वह आयात हैं जिनमें उन चीज़ों का उल्लेख (ज़िक्र) हुआ है जो…

ग़लतफहमियां पवित्र कुरआन

कुरआन का सात अ'हरूफ पर उतारा जाना

कुछ हदीसें दावा करती है कि कुरआन सात अ'हरूफ पर नाज़िल किया गया है।  जैसे कि यह खबर:                            “ “अब्द अल-रहमान इब्न अब्द अल-कारी से रवायत है कि उमर इब्न अल-खत्ताब ने उनके सामने कहा: “मैंने हिशाम इब्न हाकीम इब्न हिज़ाम को सूरा फुरकान अलग तरह से पढ़ते हुए सुना और मुझे यह सूरा खुद रसूलअल्लाह…

पवित्र कुरआन

मुक़दमा – अल्-बयान (कुरआन का परिचय)

अपने मज़मून (विषय-वस्तु) के लिहाज़ से कुरआन एक रसूल की सरगुज़श्त-ए-इंज़ार[1] है, यानी अल्लाह के रसूल की दावत, उसके मुख्तलिफ मराहिल (विभिन्न चरण) और उसमें पेश आने वाले नतीजों का बयान है। मुहम्मद (स.व) के बारे में यह मालूम है कि आप नबी होने के साथ रसूल भी थे। अल्लाह जिन इंसानों को लोगों की हिदायत (मार्गदर्शन) के लिए…