कुछ लोगों का मानना है कि ज़कात किसी गैर-मुस्लिम को नहीं दी जा सकती। यह राय ठीक नहीं है। कुरआन की निम्नलिखित आयत बताती है कि ज़कात कहाँ-कहाँ खर्च की जा सकती है:
إِنَّمَا الصَّدَقَاتُ لِلْفُقَرَاءِ وَالْمَسَاكِينِ وَالْعَامِلِينَ عَلَيْهَا وَالْمُؤَلَّفَةِ قُلُوبُهُمْ وَفِي الرِّقَابِ وَالْغَارِمِينَ وَفِي سَبِيلِ اللَّهِ وَابْنِ السَّبِيلِ فَرِيضَةً مِّنَ اللَّهِ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
[٩: ٦٠]ज़कात तो असल में ग़रीबों और ज़रुरतमंदों के लिए है और उन कार्यकर्ताओं के लिए जो ज़कात के कार्यों पर नियुक्त हैं। और उनके लिए जिनके दिलों को जोड़ना है [सत्य के साथ] । और गर्दनों के छुड़ाने में, और जो अर्थदण्ड भरें, और अल्लाह की राह में, और मुसाफिरों की सहायता में। (9:60)
इस आयत से यह साफ है कि कुरआन ज़कात लेने वालों में उनके अकीदे और धर्म की बुनियाद पर फर्क नहीं करता, दूसरे शब्दों में कहा जाये तो ज़कात किसी भी ग़रीब और ज़रूरतमंद को दी जा सकती है चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो।
– शेहज़ाद सलीम
अनुवाद: मुहम्मद असजद