Economic Issues Uncategorized आर्थिक मुद्दे ग़लतफहमियां

व्यावसायिक ब्याज़ (Commercial Interest)

 कुछ लोग सोचते हैं कि व्यापारिक उपक्रमों (commercial enterprises) से लिया जाने वाला सूद निषिद्ध (हराम) नहीं है। इस ग़लतफहमी को दूर करते हुए ग़ामिदी साहब लिखते हैं[1]: यह साफ रहना चाहिए कि रिबा  का मतलब इससे तय नहीं होता कि क़र्ज़ निजी ज़रूरत, व्यापार या फिर कल्याण परियोजना (welfare scheme) के लिए लिया गया है। तथ्य यह है कि अरबी भाषा…

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किसी नेक काम के लिए सूद लेना 

कुछ लोगों का मानना है कि सूद (ब्याज़) आधारित योजनाओं में पैसा लगाया जाना चाहिए ताकि कमाये गए सूद से जन-कल्याण परियोजनाओं (public welfare schemes) में निवेश (invest) किया जा सके और जरूरतमंद लोगों की मदद की जा सके। यहाँ यह बात साफ़ कर लेनी चाहिए कि सूद लेना इस्लाम में पूरी तरह मना है चाहे वह किसी…

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ख़िलाफ़त

["इसलाम और रियासत – एक जवाबी बयानिया” पर ऐतराज़ात के जवाब में लिखा गया लेख] जावेद अहमद ग़ामिदी  अनुवाद: आक़िब ख़ान इसमें शक नहीं कि “ख़िलाफ़त” का लफ़्ज़ कई सदीयों से “इस्तिलाह”* के तौर पर इस्तेमाल होता रहा है, लेकिन ये हरगिज़ कोई “मज़हबी इस्तिलाह” नहीं है। मज़हबी इस्तिलाह राज़ी, ग़ज़ाली, मावरदी, इब्न हज़म और इब्न ख़लदून** के बनाने से नहीं बनती और ना ही हर वो लफ़्ज़ जिसे मुसलमान किसी ख़ास मायने में इस्तेमाल करना…

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इसलाम और रियासत (एक जवाबी बयानिया) – The Counter Narrative

जावेद अहमद ग़ामिदी  अनुवाद: आक़िब ख़ान इस समय जो हालात कुछ इंतिहापसंद तहरीकों ने अपनी कार्रवाइयों से इसलाम और मुसलमानों के लिए पूरी दुनिया में पैदा कर दी है, ये उसी विचारधारा का बुरा नतीजा है जो हमारे मज़हबी मदरसों में पढ़ा और पढ़ाया जाता है, और जिसका प्रचार इस्लामी तहरीकें और मज़हबी सियासी संगठन…

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सूद और किराए का फ़र्क

कुछ लोग सूद (ब्याज) लेने को सही साबित करने के लिए कहते हैं कि जिस तरह किसी चीज़ को इस्तेमाल के लिए लेने वाले से किराया लिया जाता है उसी तरह सूद भी उधार दिए गए पैसों के किराए समान ही है। दूसरे शब्दों में कहें तो वह तर्क देते हैं कि जिस तरह एक व्यक्ति…

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क्या इस्लाम एक आर्थिक व्यवस्था भी देता है ?

ज़्यादातर लोग सोचते हैं कि इस्लाम हमें एक पूरी आर्थिक व्यवस्था (economic system) देता है और ज़रूरत सिर्फ अनुकूल हालात में उसे लागू करने की है। यह धारणा (तसव्वुर) सही नहीं है। इस बात को समझना चाहिए कि अल्लाह ने इंसान को अक्ल और तर्क से नवाज़ा है और इसके साथ ही अच्छाई और बुराई में फ़र्क करने…

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क्या सभी गैर-मुस्लिम नरक में जायेंगे ?

यह आम धारणा (तसव्वुर) है कि सारे गैर-मुसलमानों का नरक में जाना तय है। कुरआन की कुछ आयात को इस बात का आधार बनाया जाता है, जैसे की निम्नलिखित आयत: إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ وَالْمُشْرِكِينَ فِي نَارِ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ أُولَٰئِكَ هُمْ شَرُّ الْبَرِيَّة   ٩٨: ٦  अहले किताब (यहूदी और ईसाई) और मुशरिकीन…

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मुसलमानों और गैर-मुस्लिमों के बीच विरासत का कोई संबंध नहीं ?

निम्नलिखित हदीस की बुनियाद पर कुछ विद्वानों (आलिमों) का मानना है कि मुसलमानों और गैर-मुसलमानों में विरासत का कोई संबंध नहीं हो सकता:[1] उसामा इब्न ज़ैद से रवायत हैं कि रसूलअल्लाह (स.व) ने फरमाया: “एक मुसलमान किसी काफ़िर का वारिस नहीं हो सकता और ना ही कोई काफ़िर किसी मुसलमान का वारिस हो सकता है।”[2] आज…

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गैर-मुस्लिमों के लिए दुआ करना

मुसलमानों में आम ख्याल है कि कुरआन की निम्नलिखित आयत ने इस बात से रोक दिया है कि गैर-मुस्लिमों के लिए क्षमा (मग़फिरत) की दुआ की जाये: مَا كَانَ لِلنَّبِيِّ وَالَّذِينَ آمَنُوا أَن يَسْتَغْفِرُوا لِلْمُشْرِكِينَ وَلَوْ كَانُوا أُولِي قُرْبَىٰ مِن بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمْ أَنَّهُمْ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ  ٩: ١١٣    नबी और उसके मानने वालों के…

ग़लतफहमियां निकाह और तलाक़ महिलाओं से संबंधित सामाजिक मुद्दे

पति की इजाज़त के बिना बाहर जाना

लेखक: शेहज़ाद सलीम अनुवाद: मुहम्मद असजद मज़हबी हलकों में यह माना जाता है कि एक पत्नी को घर से बाहर जाने के लिए पति की इजाज़त लेना ज़रूरी है। इस मामले में एक हदीस का हवाला दिया जाता है, जो कि इस प्रकार है: इब्न उमर (रज़ि.) से रवायत हैं कि एक बार एक महिला रसूलअल्लाह…